Wednesday, January 7, 2015

And Amir ran away(Extended Version).....और आमिर भाग गया (पी.के कि दोगली नीत का आर्यो का प्रत्युत्तर)

मैं भारतीय भाषा का प्रबल समर्थक हू पर पाकिस्तानी देवनागरी नही पढ़ पाते इसलिए आंग्ल मे ही उत्तर दे रहा हू | पाकिस्तान के पैसे से पाकिस्तान परस्तो ने पी के बनाई अब पाकिस्तान के मुल्ले बड़े खुश हों रहे है क्यों के इसके जवाब नही है उनके पास और इस तरह कि बाते फैला रहा पाकिस्तान तो जवाब तो देंगे ही हम |
http://showbizicon.com/five-questions-aamir-khan-answered-about-pk/
Extended version is in bold.

Five Questions Aamir Khan Unanswered About PK.
Reporter: You stole money from a Hindu Temple, but not a ‘chadar’ from mosque/tomb?
Aamir Khan: It is the money that people need to survive in this world, not the ‘chadar.’
Reporter: So you mean to say spreading chadar over grave is not wastage of money? And people should not donate money to majars? Are you saying the dead can full fill the wishes but Allaha couldnt? Are you insulting sufi's of Islam?
Aamir Khan: Next question please
Reporter: In a scene in the film, Lord Shiva was degraded. Why not the Prophet or Hussain of Islam?
AK: First of all, none of the Lord(s) were degraded. Secondly Muslims don’t use any picture or figure of their Prophet or Hussain (A.S). Therefore, you cannot impersonate them in any way.
Reporter: Don't you think Muslims take Muhammad name five times in a day along with Allah. And they dont picturise Muhammad because Muslims dont have any thing good to show about Muhammad. Like he had sex with 9 year old girl at the age of 54. Stories of his tyranny over jewish tribes etc etc. Muslims become agitative, and you know if you try to show this you wont be alive by now.
Aamir Khan: Next question please
Reporter: Posters of missing Lords and Ladies of Hinduism were displayed in the film. Why not the God of Muslims?
AK: I would reply to this question with the same answer. You cannot raise the question on Allah or His personality since Islam doesn’t show or use any picture of Him.
Reporter: Dont you remember the incidence of Miraj? Muhammad himself went to meet allaha riding on a flying mule(mixture of horse and donkey). Are you trying to say muhammad lied about this and spend his night with someone else as most of the scholars claim.
Aamir Khan: Next question please
Reporter: The guy in the film was a Muslim while the girl was Hindu. The film ended up showing that Muslim or Pakistani men are not a fraud but loyal. Don’t you think that love story was a part of Jihad.
AK: Well, no. The ending of the film had a message that Muslims and Pakistanis are not who we think they are. They are loyal and dutiful instead. Previously, we have seen a Hindu boy and a Muslim girl in many movies, neither we protested against it nor you did. I guess you shouldn’t protest now either.
Reporter: Why it is needed to show that muslims and pakistanis are not fraud? Is this an effort to hide the enlightment of people. A country who denied to accept the bodies of his soldiers in kargil or its jihadis involved in 26/11 is worth to defend. From Muhammad gauri to Afzal khan,Akbar there is long list proving muslims can never be loyal to the people of other religion. Do you have any real example to prove your fictious story?
Reporter: We saw you chasing and targeting a Hindu Saint throughout the movie. Why not a Muslim cleric?
AK: None of the clerics in any Islamic society calls himself a messenger of God, or someone who can contact his God. Every cleric, no matter how senior he is, learns from the book of Allah, The Holy Quran, and preaches from it.
Reporter: Dont you think the concept of messenging service is only prevailed in Islam? Since allaha is not omnipresent he needs to send his messages through angels to their messengers. Sometimes satan becomes angel and took the verses and send them to the messenger like quran 52:19,20 talks about three daughters of allah. Salmas rushdie novel is all about this, dont you think you lost a chance to show that muhammad was the real culprit who fooled millions by selfproclaimation of being messenger and doing all evils on the name of his own imaginary God.
Aamir Khan: Enough I am a muslim and question over our rasul is not allowed in Islam. That will take me to hell. I am leaving this interview

Saturday, January 3, 2015

रंगीला रसूल के लेखक पंडित चमूपति जी के लिए महाशय राजपाल का बलिदान


यह लेख हमें फेसबुक से प्राप्त हुआ लेखक और टंकण कर्ता दोनों अज्ञात है अतः हम उन्हें आभार प्रकट करते है विषय को लेख से समझाने के लिए | आर्य समाज ने धर्म रक्षा के लिए कितना बलिदान दिया है ये हिंदू समाज तब समझेगा जब इतिहास जानेगा | अस्तित्व ऐसे नही बना रहता सतत संघर्ष से विजय मिलती है | एक पुस्तक का जवाब पुस्तक के रूप मे देने पर राक्षस समाज कैसे तिलमिला गया | अब तो लोगो को पुस्तक पढनी चाहिए और सत्य को सत्य जानकार ही कहना चाहिए |
अमर बलिदानी महाशय राजपाल
-------------------------------------------------------------------सन १९२३ में मुसलमानों की ओर से दो पुस्तकें ” १९ वीं सदी का महर्षि “और“कृष्ण,तेरी गीता जलानी पड़ेगी ” प्रकाशित हुई थी. पहली पुस्तक में आर्यसमाज का संस्थापक स्वामी दयानंद का सत्यार्थ प्रकाश के १४ सम्मुलास में कुरान की समीक्षा से खीज कर उनके विरुद्ध आपतिजनक एवं घिनोना चित्रण प्रकाशित किया था जबकि दूसरी पुस्तक में श्री कृष्ण जी महाराज के पवित्र चरित्र पर कीचड़ उछाला गया था. उस दौर में विधर्मियों की ऐसी शरारतें चलती हीरहती थी पर धर्म प्रेमी सज्जन उनका प्रतिकार उन्ही के तरीके से करते थे. महाशय
राजपाल ने स्वामी दयानंद और श्री कृष्ण जी महाराज के अपमान का प्रति उत्तर १९२४ में रंगीला रसूल के नाम से पुस्तक छाप कर दिया जिसमे मुहम्मद साहिब की जीवनी व्यंग्यात्मक शैली में प्रस्तुत की गयी थी. यह पुस्तक उर्दू में थी और इसमें सभी घटनाएँ इतिहास सम्मत और प्रमाणिक थी.पुस्तक में लेखक के नाम के स्थान पर “दूध का दूध और पानी का पानी छपा था” |


आर्य रत्न पंडित चमूपति
 वास्तव में इस पुस्तक के लेखक पंडित चमूपति जी थे जो की आर्यसमाज के श्रेष्ठ विद्वान् थे. वे महाशय राजपाल के अभिन्न मित्र थे. मुसलमानों के ओर से संभावित प्रतिक्रिया के कारण चमूपति जी इस पुस्तक में अपना नाम नहीं देना चाहते थे इसलिए उन्होंने महाशय राजपाल से वचन ले लिया की चाहे कुछ भी हो जाये,कितनी भी विकट स्थिति क्यूँ न आ जाये वे किसी को भी पुस्तकके लेखक का नाम नहीं बतायेगे | महाशय राजपाल ने अपने वचन की रक्षा अपने प्राणों की बलि देकर की पर पंडित चमूपति सरीखे विद्वान् पर आंच तक न आने दी.१९२४ में छपी रंगीला रसूल बिकती रही पर किसी ने उसके विरुद्ध शोर न मचाया फिर महात्मा गाँधी ने अपनी मुस्लिम परस्त निति में इस पुस्तक के विरुद्ध एक लेख लिखा. इस पर कट्टरवादी मुसलमानों ने महाशय राजपाल के विरुद्ध आन्दोलन छेड़ दिया. सरकार ने उनके 
विरुद्ध १५३ए धारा के अधीन अभियोग चला दिया |
    
अभियोग चार वर्ष तक चला. राजपाल जी को छोटे न्यायालय ने डेढ़ वर्ष का कारावास तथा १००० रूपये का दंड सुनाया. इस फैसले के विरुद्ध अपील करने पर सजा एक वर्ष तक कम कर दी गयी.इसके बाद मामला हाई कोर्ट में गया.कँवर दिलीप सिंह की अदालत ने महाशय राजपाल को दोषमुक्त करार दे दिया.मुसलमान इस निर्णय से भड़क उठे. खुदाबख्स नामक एक पहलवान मुसलमान ने महाशय जी पर हमला कर दिया जब वे अपनी दुकान पर बैठे थे परसंयोग से आर्य सन्यासी स्वतंत्रानंद जी महाराज एवं स्वामी वेदानन्द जी महाराज वह उपस्थित थे. उन्होंने घातक को ऐसा कसकर दबोचा की वह छुट न सका. उसे पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया गया, उसे सात साल की सजा हुई. रविवार ८ अक्टूबर १९२७ को स्वामी सत्यानन्द जी महाराज को महाशय राजपाल समझ कर अब्दुल अज़ीज़ नमक एक मतान्ध मुसलमानने एक हाथ में चाकू ,एक हाथ में उस्तरा लेकर हमला कर दिया. स्वामी जी घायल कर वह भागना ही चाह रहा था की पड़ोस के दूकानदार महाशय नानकचंदजी कपूर ने उसे पकड़ने का प्रयास किया.इस प्रयास में वे भी घायल हो गए. तो उनके छोटे भाई लाला चूनीलाल जी जी उसकी ओर लपके.उन्हें भी घायल करते हुए हत्यारा भाग निकला पर उसे चौक अनारकली पर पकड़ लिया गया. उसे चोदह वर्ष की सजा हुई ओर तदन्तर तीन वर्ष के लिए शांति की गारंटी का दंड सुनाया गया.स्वामी सत्यानन्द जी के घाव ठीक होने में करीब डेढ़ महीना लगा.६ अप्रैल १९२९ को महाशय अपनी दुकान पर आराम कर रहे थे. तभी इल्मदीन नामकएक मतान्ध मुसलमान ने महाशय जी की छाती में छुरा घोप दिया जिससे महाशय जी का तत्काल प्राणांत हो गया.हत्यारा अपने जान बचाने के लिए भागा ओर महाशय सीताराम जी के लकड़ी के टाल में घुस गया. महाशय जी के सपूत विद्यारतन जी ने उसे कस कर पकड़ लिया.पुलिस हत्यारे को पकड़ कर ले गयी. देखते ही देखते हजारों लोगो का ताँता वहाँ पर लग गया.देवतास्वरूप भाई परमानन्द ने अपने सम्पादकीय में लिखा हैं की “आर्यसमाज के इतिहास में यह अपने दंग का तीसरा बलिदान हैं. पहले धर्मवीर लेखराम का बलिदान इसलिए हुआ की वे वैदिक धर्म पर किया जाने वाले प्रत्येक आक्षेप का उत्तर देते थे. उन्होंने कभी भी किसी मत या पंथ के खंडन की कभी पहल नहीं की. सैदेव उत्तर- प्रति उत्तर देते रहे.दूसरा बड़ा बलिदान स्वामी श्रद्धानंद जी का था.उनके बलिदान का कारण यह था की उन्होंने भुलावे में आकर मुसलमान हो गए भाई बहनों को, परिवारों को पुन: हिन्दू धर्म में सम्मिलित करने का आन्दोलन चलाया और इस ढंग से स्वागत किया की आर्य जाति में “शुद्धि” के लिए एक नया उत्साह पैदा हो गया. विधर्मी इसे न सह सके.तीसरा बड़ा बलिदान महाशय राजपाल जीका हैं.जिनका बलिदान इसलिए अद्वितीय हैं की उनका जीवन लेने के लिए लगातार तीन आक्रमण किये गए.पहली बार २६ सितम्बर १९२७ को एक व्यक्ति खुदाबक्श ने किया दूसरा आक्रमण ८ अक्टूबर को उनकी दुकान पर बैठे हुए स्वामी सत्यानन्द पर एक व्यक्ति अब्दुल अज़ीज़ ने किया. ये दोनों अपराधी अब कारागार में दंड भोग रहे हैं. इसके पश्चात अब डेढ़ वर्ष बीत चूका हैं की एक युवक इल्मदीन, जो न जाने कब से महाशय राजपाल जी के पीछे पड़ा था, एक तीखे छुरे से उनकी हत्या करने में सफल हुआ हैं. जिस छोटी सी पुस्तक लेकर महाशय राजपाल के विरुद्ध भावनायों को भड़काया गया था, उसे प्रकाशित हुए अब चार वर्ष से अधिक समय बीत चूका हैं.”.महाशय जी का अंतिम संस्कार उसी शाम को कर दिया गया. परन्तु लाहौर के हिंदुयों ने यह निर्णय किया की शव का संस्कार अगले दिन किया जाये. पुलिस के मन में निराधार भूत का भय बैठ गया और डिप्टी कमिश्नर ने रातों रात धारा १४४ लगाकर सरकारी अनुमति के बिना जुलुस निकालने पर प्रतिबन्ध लगा दिया. अगले दिन प्रात: सात बजे ही हजारों की संख्या में लोगो का ताँता लग गया. सब शव यात्रा के जुलुस को शहर के बीच से निकल कर ले जाना चाहते थे पर कमिश्नर इसकी अनुमति नहीं दे रहा था. इससे भीड़ में रोष फैल गया. अधिकारी चिढ गए. अधिकारियों ने लाठी चार्ज की आज्ञा दे दी. पच्चीस व्यक्ति घायल हो गए . अधिकारियों से पुन: बातचीत हुई. पुलिस ने कहाँ की लोगों को अपने घरों को जाने दे दिया जाये. इतने में पुलिस ने फिट से लाठीचार्ज कर दिया. १५० के करीब व्यक्ति घायल हो गए पर भीड़ तस से मस न हुई. शव अस्पताल में ही रखा रहा. दुसरे दिन सरकार एवं आर्यसमाज के नेताओं के बीच एक समझोता हुआ जिसके तहत शव को मुख्य बाजारों से धूम धाम से ले जाया गया. 
हिंदुयों ने बड़ी श्रद्धा से अपने मकानों से पुष्प वर्षा करी.ठीक पौने बारह बजे हुतात्मा की नश्वर देह को महात्मा हंसराज जी ने अग्नि दी. महाशय जी के ज्येष्ठ पुत्र प्राणनाथ जी तब केवल ११ वर्ष के थे पर आर्य नेताओं ने निर्णय लिया की समस्त आर्य हिन्दू समाज के प्रतिनिधि के रूप में महात्मा हंसराज मुखाग्नि दे. जब दाहकर्म हो गया तो अपार समूह शांत होकर बैठ गया.ईश्वर प्रार्थना श्री स्वामी स्वतंत्रानंद जी ने करवाई. प्रार्थना की समाप्ति पर भीड़ में से एकदम एक देवी उठी. उनकी गोद में एक छोटा बालक था.यह देवी हुतात्मा राजपाल की धर्मनिष्ठा साध्वी धर्मपत्नी थी. उन्होंने कहा की मुझे अपने पति के इस प्रकार मारे जाने का दुःख अवश्य हैं पर साथ ही उनके धर्म की बलिवेदी पर बलिदान देने का अभिमान भी हैं. वे मारकर अपना नाम अमर कर गए.पंजाब के सुप्रसिद्ध पत्रकार व कविनानकचंद जी “नाज़” ने तब एक कविता महाशय राजपाल के बलिदान का यथार्थ चित्रण में लिखी थी-फ़ख से सर उनके ऊँचे आसमान तक तक हो गए,हिंदुयों ने जब अर्थी उठाई राजपाल.फूल बरसाए शहीदों ने तेरी अर्थी पे खूब, देवताओं ने तेरी जय जय बुलाई राजपालहो हर इक हिन्दू को तेरी ही तरह दुनिया नसीब जिस तरह तूने छुरी सिने पै खाई राजपालतेरे कातिल पर न क्यूँ इस्लाम भेजे लानतें, जब मुजम्मत कर रही हैं इक खुदाई राजपालमैंने क्या देखा की लाखों राजपाल उठने लगे दोस्तों ने लाश तेरी जब जलाई राजपाल
https://archive.org/details/RangeelaRasul?_e_pi_

बोलीवुड के इस्लामीकरण से भारत कि राष्ट्रीय एकता अखंडता को खतरा

एक समय था जब अमिताभ बच्चन को सब ओर थका हार कर मंदिर जाते दिखाया जाता था | वहा वो मूर्ति के सामने अपनी समस्या बोलते या कोई अन्य अभिनेता सिर पटकता था और उसकी मा या प्रेमिका/पत्नी/पिता/मित्र इत्यादि का स्वास्थ ठीक हों जाता था |  फिल्मे लोगो मे विश्वास जगाती थी के जब कुछ नही हैं तब धर्म का सहारा है भगवान हैं ईश्वर अंतिम आश्रय हैं | हम आर्य हैं, योग का मार्ग मानते हैं पर हम लोगो को विकल्प देते हैं के मूर्तिपूजा से ऊपर उठो ऋषियों का मार्ग अपनाओ|  आज पी.के जैसी फिल्मे क्या कहती हैं मंदिर ना जाओ, वहा पैसा ना चढाओ, सारे बाबा ढोंगी हैं पाकिस्तानी मुल्ले अच्छे हैं उनसे शादी करो वो धोखा नहीं देते | रंडियों और दलालो का अड्डा बना हुआ हैं बोलीवुड जो पाकिस्तान आई.एस.आई और शेखो के पैसे से चल रहा हैं | तभी बप्पा रवाल, पृथ्वीराज चौहान,महाराणा कुम्भा, महाराणा सांगा, महाराणा प्रताप, शिवा जी, ताना जी मलुसुरे, बंदा वैरागी, हरी सिंह इत्यादि शूरवीरों पर फिल्म नहीं बनती | इसके विपरीत आताताईयों एवं आक्रम्न्करियो पर फिल्म बनाई जाती हैं | शाहजाहा, ताजमहल, मुगलेआजम, जोधा-अकबर जैसी फिल्मे बनाई जाती हैं | फिजा,मिशन कश्मीर,मैं हू ना, शौर्य, हैदर जैसी फिल्मे बनती है जो हमारी ही सेना पर कालिख पोतने का प्रयास करती हैं | इसके साथ-२ नंगापन खुल कर परोसते हैं शादी से पहले सम्बन्ध बनाओ बाद सम्बन्ध बनाओ बुढापे मे जवान लड़की से सम्भोग करो प्यार कि उम्र नही होती इत्यादि-२ | संवाद मे उर्दु और फारसी के शब्द इतने मिला दिए जाते है लोग उसी को हिंदी समझ के हिंदी को मुसलमानों कि भाषा समझने लगे हैं | गानों मे मौला, अल्लाह, अली सूफी संगीत जैसे शब्दों का छलावा दे कर छोटे-२ बच्चों से बडो तक अरब कि भाषा और सभ्यता कि छाप छोड़ देते हैं | बोलीवुड वास्तव मे राष्ट्रीय एकता अंखडता और सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बनता जा रहा है |